नीलकण्ठ में भगवान महादेव के स्वयं-भू लिंग के रूप में प्रकट होने के समय से पौराणिक काल तक यहां अनेकों प्रसिद्ध मुनिगण आकर जप-तप करते रहे।
पौराणिक युग के पश्चात भगवान आद्यशंकराचार्य के उदय होने तक यहां अनेक सिद्धगण रहकर तपस्या करते रहे। उनमें से एक सिद्धबाबा बहुत प्रसिद्ध हैं। श्री नीलकण्ठ महादेव से जी लगभग आधा किलोमीटर दूर रानी की कोठी के पास एक शिला पर सिद्धबाबा का स्थान है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शंकराचार्य के आगमन से पूर्व यही सिद्धबाबा श्री नीलकण्ठ की पूजा करते थे। कहा जाता है कि भगवान आद्यशंकराचार्य के पूर्वकाल से आज तक ये जीवित हैं और कभी-कभी रात्रि में आकर भगवान नीलकण्ठ की पूजा अर्चना कर जाते हैं। उनके स्थान पर उनकी पूजा स्वयं ही हो जाती है। वर्ष में एक बार उनका ध्वज बदला जाता है ।
मन्दिर में कलावा ही प्रसाद रूप में चढाया जाता है। बाबा छोटूगिरी महाराज के अलावा पवनपुत्र हनुमानजी की मूर्ति मन्दिर में विराजमान हैं। यहीं बाबा जी का धूना भी है। मन्दिर से पूरे नीलकंठ क्षेत्र का नजारा देखने को मिलता है।
-श्री मुकेश कुकरेती द्वारा वाट्सैप समूह 'कुकरेती भ्रातृ मण्डल' में प्रेषित, दिनांक 12.09.2017
पौराणिक युग के पश्चात भगवान आद्यशंकराचार्य के उदय होने तक यहां अनेक सिद्धगण रहकर तपस्या करते रहे। उनमें से एक सिद्धबाबा बहुत प्रसिद्ध हैं। श्री नीलकण्ठ महादेव से जी लगभग आधा किलोमीटर दूर रानी की कोठी के पास एक शिला पर सिद्धबाबा का स्थान है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शंकराचार्य के आगमन से पूर्व यही सिद्धबाबा श्री नीलकण्ठ की पूजा करते थे। कहा जाता है कि भगवान आद्यशंकराचार्य के पूर्वकाल से आज तक ये जीवित हैं और कभी-कभी रात्रि में आकर भगवान नीलकण्ठ की पूजा अर्चना कर जाते हैं। उनके स्थान पर उनकी पूजा स्वयं ही हो जाती है। वर्ष में एक बार उनका ध्वज बदला जाता है ।
मन्दिर में कलावा ही प्रसाद रूप में चढाया जाता है। बाबा छोटूगिरी महाराज के अलावा पवनपुत्र हनुमानजी की मूर्ति मन्दिर में विराजमान हैं। यहीं बाबा जी का धूना भी है। मन्दिर से पूरे नीलकंठ क्षेत्र का नजारा देखने को मिलता है।
-श्री मुकेश कुकरेती द्वारा वाट्सैप समूह 'कुकरेती भ्रातृ मण्डल' में प्रेषित, दिनांक 12.09.2017
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