Saturday, 30 September 2017

विजयदशमी की शुभकामनाएं



सभी बन्धुओँ को विजय दशमी की शुभकामनाएं।

-श्री महावीर प्रसाद कुकरेती द्वारा वाट्सैप समूह 'कुकरेती भ्रातृ मण्डल' में प्रेषित, दिनांक 30.09.2017



विजय दशमी की शुभकामनाएं।

-श्री सुंदर श्याम कुकरेती द्वारा वाट्सैप समूह 'कुकरेती भ्रातृ मण्डल' में प्रेषित, दिनांक 30.09.2017



अधर्म पर धर्म की विजय
असत्य पर सत्य की विजय
बुराई पर अच्छाई की विजय
पाप पर पुण्य की विजय
अत्याचार पर सदाचार की विजय
क्रोध पर दया, क्षमा की विजय
अज्ञान पर ज्ञान की विजय
रावण पर श्रीराम की विजय के प्रतीक पावन पर्व
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायेँ....

-श्री राजेश कुकरेती द्वारा वाट्सैप समूह 'कुकरेती भ्रातृ मण्डल' में प्रेषित, दिनांक 30.09.2017



रावण बनना भी कहां आसान...
रावण में अहंकार था
तो पश्चाताप भी था
रावण में वासना थी
तो संयम भी था
रावण में सीता के अपहरण की ताकत थी
तो बिना सहमति परस्त्री को स्पर्श भी न करने का संकल्प भी था
सीता जीवित मिली ये राम की ही ताकत थी
पर पवित्र मिली ये रावण की भी मर्यादा थी
राम, तुम्हारे युग का रावण अच्छा था..
दस के दस चेहरे, सब "बाहर" रखता था...!!
महसूस किया है कभी
उस जलते हुए रावण का दुःख
जो सामने खड़ी भीड़ से
बारबार पूछ रहा था.....
*"तुम में से कोई राम है क्या ❓
विजयदशमी की सम्पूर्ण कुकरेती परिवार को हार्दिक बधाई व मंगलमयी शुभकामनायें।

-श्री सुभाष कुकरेती द्वारा वाट्सैप समूह 'कुकरेती भ्रातृ मण्डल' में प्रेषित, दिनांक 30.09.2017


मर चुका है रावण का शरीर
स्तब्ध है सारी लंका
सुनसान है किले का परकोटा
कहीं कोई उत्साह नहीं
किसी घर में नहीं जल रहा है दिया
विभीषण के घर को छोड़ कर ।

सागर के किनारे बैठे हैं विजयी राम
विभीषण को लंका का राज्य सौंपते हुए
ताकि सुबह हो सके उनका राज्याभिषेक
बार-बार लक्ष्मण से पूछते हैं
अपने सहयोगियों की कुशल-क्षेम
चरणों के निकट बैठे हैं हनुमान !

मन में क्षुब्ध हैं लक्ष्मण
कि राम क्यों नहीं लेने जाते हैं सीता को
अशोक वाटिका से
पर कुछ कह नहीं पाते हैं ।

धीरे-धीरे सिमट जाते हैं सभी काम
हो जाता है विभीषण का राज्याभिषेक
और राम प्रवेश करते हैं लंका में
ठहरते हैं एक उच्च भवन में ।

भेजते हैं हनुमान को अशोक-वाटिका
यह समाचार देने के लिए
कि मारा गया है रावण
और अब लंकाधिपति हैं विभीषण ।

सीता सुनती हैं इस समाचार को
और रहती हैं ख़ामोश
कुछ नहीं कहती
बस निहारती है रास्ता
रावण का वध करते ही
वनवासी राम बन गए हैं सम्राट ?

लंका पहुँच कर भी भेजते हैं अपना दूत
नहीं जानना चाहते एक वर्ष कहाँ रही सीता
कैसे रही सीता ?
नयनों से बहती है अश्रुधार
जिसे समझ नहीं पाते हनुमान
कह नहीं पाते वाल्मीकि ।

राम अगर आते तो मैं उन्हें मिलवाती
इन परिचारिकाओं से
जिन्होंने मुझे भयभीत करते हुए भी
स्त्री की पूर्ण गरिमा प्रदान की
वे रावण की अनुचरी तो थीं
पर मेरे लिए माताओं के समान थीं ।

राम अगर आते तो मैं उन्हें मिलवाती
इन अशोक वृक्षों से
इन माधवी लताओं से
जिन्होंने मेरे आँसुओं को
ओस के कणों की तरह सहेजा अपने शरीर पर
पर राम तो अब राजा हैं
वह कैसे आते सीता को लेने ?

विभीषण करवाते हैं सीता का शृंगार
और पालकी में बिठा कर पहुँचाते है राम के भवन पर
पालकी में बैठे हुए सीता सोचती है
जनक ने भी तो उसे विदा किया था इसी तरह !

वहीं रोक दो पालकी,
गूँजता है राम का स्वर
सीता को पैदल चल कर आने दो मेरे समीप !
ज़मीन पर चलते हुए काँपती है भूमिसुता
क्या देखना चाहते हैं
मर्यादा पुरुषोत्तम, कारावास में रह कर
चलना भी भूल जाती हैं स्त्रियाँ ?

अपमान और उपेक्षा के बोझ से दबी सीता
भूल जाती है पति-मिलन का उत्साह
खड़ी हो जाती है किसी युद्ध-बन्दिनी की तरह !

कुठाराघात करते हैं राम ---- सीते, कौन होगा वह पुरुष
जो वर्ष भर पर-पुरुष के घर में रही स्त्री को
करेगा स्वीकार ?
मैं तुम्हें मुक्त करता हूँ, तुम चाहे जहाँ जा सकती हो ।

उसने तुम्हें अंक में भर कर उठाया
और मृत्युपर्यंत तुम्हें देख कर जीता रहा
मेरा दायित्व था तुम्हें मुक्त कराना
पर अब नहीं स्वीकार कर सकता तुम्हें पत्नी की तरह !

वाल्मीकि के नायक तो राम थे
वे क्यों लिखते सीता का रुदन
और उसकी मनोदशा ?
उन क्षणों में क्या नहीं सोचा होगा सीता ने
कि क्या यह वही पुरुष है
जिसका किया था मैंने स्वयंवर में वरण
क्या यह वही पुरुष है जिसके प्रेम में
मैं छोड़ आई थी अयोध्या का महल
और भटकी थी वन-वन !

हाँ, रावण ने उठाया था मुझे गोद में
हाँ, रावण ने किया था मुझसे प्रणय निवेदन
वह राजा था चाहता तो बलात ले जाता अपने रनिवास में
पर रावण पुरुष था,
उसने मेरे स्त्रीत्व का अपमान कभी नहीं किया
भले ही वह मर्यादा पुरुषोत्तम न कहलाए इतिहास में !

यह सब कहला नहीं सकते थे वाल्मीकि
क्योंकि उन्हें तो रामकथा ही कहनी थी !

आगे की कथा आप जानते हैं
सीता ने अग्नि-परीक्षा दी
कवि को कथा समेटने की जल्दी थी
राम, सीता और लक्ष्मण अयोध्या लौट आए
नगरवासियों ने दीपावली मनाई
जिसमें शहर के धोबी शामिल नहीं हुए ।

आज इस दशहरे की रात
मैं उदास हूँ उस रावण के लिए
जिसकी मर्यादा
किसी मर्यादा पुरुषोत्तम से कम नहीं थी ।

मैं उदास हूँ कवि वाल्मीकि के लिए
जो राम के समक्ष सीता के भाव लिख न सके ।

आज इस दशहरे की रात
मैं उदास हूँ स्त्री अस्मिता के लिए
उसकी शाश्वत प्रतीक जानकी के लिए !
मैंने हर वर्ष, महसूस किया है,
उस जलते हुए रावण का दुःख,

जो सामने खड़ी भीड़ से,
नतमस्तक होकर,
बार -बार पूछ रहा था,

"तुम में से कोई राम है क्या?"

-श्री के के (9045165023) द्वारा वाट्सैप समूह 'कुकरेती भ्रातृ मण्डल' में प्रेषित, दिनांक 30.09.2017
 

Wednesday, 27 September 2017

पौड़ी गढ़वाल का डांडा मंडल क्षेत्र

उत्तराखंड की मिनी विलायत के नाम से जाना जाता है पौड़ी गढ़वाल का डांडा मंडल क्षेत्र! (मनोज इष्टवाल)
ऋषिकेश आईडीपीएल के वीरभद्र क्षेत्र को पार करते ही जब आप गंगा भोगपुर में दाखिल होते हैं तब वहां से घुप्प घने जंगल से होती हुई एक सड़क सर्प की तरह उनफ़ती हुई चढ़ाई चढ़ने व जगंल से दूर भागने की कोशिश में जद्दोजहद करती दिखाई देती है लेकिन वहीँ दूसरी ओर पर्यटकों के कैमरों की क्लिक अपनी गाडी से बाहर निकलकर जंगल की वीरानी को चीरती हुई निकल जाती. जैसे ही आप गंगा भोगपुर से लगभग 12-15 किमी. आगे का सफर तय करते हैं तब आप महसूस करते हैं कि राजा जी नेशनल पार्क क्षेत्र अब आपसे नीचे रह गया है व आपके पैर उन महाकाय वृक्षों के सिरों के ऊपर पहाड़ी पर हैं जहाँ से आप पूरे ऋषिकेश हरिद्वार गंगा व मीलों तक फैले राजा जी नेशनल पार्क को देख सकते हैं. तब आप समझ जायेगे कि आप छोटी विलायत के पादप गाँव तल्ला बनास की सरहद पर खड़े हैं.

तल्ला बनास, कसाण, मल्ला बनास, किमसार, रामजीवाला व धारकोट तक फैले क्षेत्र को यूँ तो स्थानीय भाषा में डांडामंडल क्षेत्र कहा गया है लेकिन ब्रिटिश काल में इसे छोटी विलायत कहा जाता था जो स्वतंत्र भारत के शुरूआती दौर तक इस नाम से जाना जाता था लेकिन चढ़ते सूरज के साथ इस क्षेत्र ने स्वतंत्र भारत में अपने उस विकास को जैसे दीमक लगा दी हो. यहाँ के जन जो भी पढ़ लिखकर बड़ा हुआ उसी ने इस क्षेत्र को तिलांजलि दे दी और मैदानी भू-भाग में अपनी रै-बस कर दी. फिर क्या था उत्तरप्रदेश के जमाने में भी इस क्षेत्र के लोगों को कोई इतना सबल नेतृत्व नहीं मिला जिससे ये साबित कर सकें कि यह सचमुच छोटी है और न उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद ही यहाँ से कोई ऐसा नेता जन्म ले पाया जो यहाँ के मुद्दों को विकास की गति में शामिल करवा सके. नतीजा यह हुआ कि इस छोटी विलायत ने न सिर्फ अपना वजूद खो दिया बल्कि यहाँ से पलायन ने भी रफ्तार पकडनी शुरू कर दी. भले ही यह अलग बात है कि इस क्षेत्र से पलायन का आंकडा आज भी 30 फ़ीसदी से ज्यादा नहीं है लेकिन पलायन वे लोग करते गए जिनके पूर्वजों के परिश्रम की बदौलत यह क्षेत्र छोटी विलायत कहलाता था. यहाँ का जनमानस आज भी अपनी उपजाऊ जमीन पर इतना अन्न उत्पन्न करने में सक्षम है कि उसे साल भर तक बाजार से राशन खरीदने की जरुरत कम ही पड़ती है.

बनास गाँव की उड़द इतनी प्रसिद्ध है कि हर बर्ष यहाँ के लोगों लाखों रूपये की उड़द बेचते हैं जिसके खरीददार घर-घर पहुँच जाते हैं. किमसार की धान अपने आप में लाजवाब मानी जाती है क्योंकि उखड़ खेती में भी यहाँ बारीक प्रजाति का खुशबूदार चावल होता है. यहाँ आलू हल्दी और अदरक का अच्छा उत्पादन होता है. हाई फीड नामक संस्था द्वारा इस क्षेत्र को उन्नत कृषि व सब्जी उत्पादन से जोड़ने के प्रयास किये जा रहे हैं. वह मदर एनजीओ के रूप में ओएनजीसी व हिल्मेल फाउंडेशन के साथ मिलकर कार्य करेगी. इसी संदर्भ में हाईफीड संस्था के निदेशक मंडल के उदित घिल्डियाल व कमल बहुगुणा ने यहाँ की मिटटी व उर्बरा शक्ति की जांच के लिए क्षेत्रीय भ्रमण किया. उदित घिल्डियाल का  कहना है कि वे इस क्षेत्र में ऐसी वैज्ञानिक तकनीक विकसित करने पर विचार कर रहे हैं जिसमें उच्च क्वालिटी की महंगी सब्जी (देशी विदेशी) का बड़े पैमाने पर उत्पादन कर ग्रामीण आर्थिकी को सुधारा जाने ला लक्ष्य रखा गया है. वे बताते हैं कि तल्ला बनास, मल्ला बनास व किमसार गाँव में जरुरतमंद बीस बीस महिलाओं के ऐसे समूह बनाने की कवायद पर जोर दिया जा रहा है जो कृषि वैज्ञानिकों से नगदी फसल का प्रशिक्षण लें व महंगी सब्जियों का उत्पादन कर अपनी आर्थिकी सुधारें. उन्होंने दावा किया है कि ऐसे में शहर की ओर बढ़ते बेवजह के कदम रुकेंगे व ग्रामीण आर्थिकी भी सुधरेगी. इस टीम द्वारा किमसार व मल्ला बनास में ग्राम प्रधान व अन्य लोगों के साथ बैठकें की गयी. मल्ला बनास की महिला पंचायत सचिव बताती हैं कि खेतों में अगर सूअर न घुसें तो कोई भी यहाँ एक सीजन में 20 हजार से एक लाख रूपये का अदरक बेच सकता है. लेकिन जंगली सूअरों द्वारा फसल चौपट कर देना यहाँ आम सी बात हो रखी है.

छोटी विलायत के रूप में प्रसिद्ध इस क्षेत्र का विकास गोरखा काल (सन 1803 से 1815 तक ) सबसे अधिक बताया जाता है. कहेते हैं इस क्षेत्र में तब कुमाऊं व पश्चिमी नेपाल से आकर कई लोग बसे जिन्होंने यहाँ खेती को बिशेष प्रोत्साहन दिया यही कारण भी रहा कि इस क्षेत्र में नेपाली की राणी का महल रहा जो आज भी नीलकंठ के पास है. इसके प्रमाण यह भी है कि इस क्षेत्र के अधिपत्य देव गुल यानि गोलज्यू कई जातियों में आज भी कुलदेवता के रूप में पूजा जाता है या फिर घाति देवता के रूप में जाना जाता है. यहाँ का जनमानस आज भी श्रमसाध्य है और यही कारण भी है कि इस क्षेत्र के दो गाँव किमसार व मल्ला बनास ने जनशक्ति से अपने अपने गाँव के हर परिवार के लिए पेयजल आपूर्ति सुचारू कर दी है. बर्षों तक सरकारी विभागों में पानी-पानी की गुहार लगाने वाले प्रदेश के आज भी सैकड़ों गाँव व उनमें रहने वाले ग्रामीणों के हलक प्यासे हैं. हर सरकार पेयजल आपूर्ति के दावे कर करोड़ों की पेयजल योजना कागजों में उतारती है लेकिन नतीजा सिफर ही होता है. ऐसा ही कुछ डांडामंडल क्षेत्र के लोगों के साथ भी बर्षों तक होता आया है. लेकिन अंत में गाँव के ग्रामीणों के प्यासे हलक कैसे तर्र हों इसके लिए सर्व प्रथम डांडामंडल के मल्ला बनास के लोगों ने पंचायत बुलाई और जो निर्णय लिया वह अभूतपूर्व साबित हुआ आज लगभग 100 परिवारों के इस गाँव में ग्रामीण श्रम शक्ति के कारण घर-घर 24 घंटे के पेयजल कनेक्शन है.

तल्ला बनास के समाजसेवी व वर्तमान में इंटर कालेज किमसार के प्रधान बचन सिंह बिष्ट बताते हैं कि सन 2012-2013 में ग्रामीणों ने जनसहयोग से लगभग रूपये 80 हजार अंशदान, रूपये 60 हजार पंचायती सहयोग व रूपये 2 लाख खंड विकास के सहयोग से ग्रामीण श्रमदान शुरू कर दिया व रौला-पाख़ा स्रोत से पानी की पाइप लाइन गाँव तक बिछानी शुरू कर दी. अंत में पेयजल निगम द्वारा एक रिजर्व टैंक बनाकर ग्रामीणों के सपनों को साकार करने अपनी भूमिका निभाई. मात्र कुछ लाख में ही तब से अब तक इस गाँव की पेयजल आपूर्ति बदस्तूर जारी है. मल्ला बनास की देखा-देखी में ग्राम किमसार जोकि बर्षों से प्यासा था के ग्रामीणों ने भी बर्ष 2016-2017 में श्रमदान के लिए हाथों में गैंती-फावड़े कुदाल उठाये व जोगियापाणी स्रोत के मुहावने पर जा पहुंचे. मिटटी, गारे, पत्थर पर लोहे के फल पाइप लाइन का रास्ता बनाते आखिर रिजर्व टैंक तक जा पहुंचे जो लगभग 20000 लीटर एकत्र किया जाता है. यहाँ की ग्राम प्रधान सुनीता देवी बताती हैं कि मात्र 8.50 लाख में आखिर पाइप लाइन घर-घर पहुंचकर 70 घरों के कनेक्शनों को 24 घंटे पेयजल आपूर्ति कर रही है.  वो बताती हैं कि इस पेयजल लाइन को बिछाने में लगभग 3.13 लाख भाजपा की पूर्व विधायक विजय बडथ्वाल, 2.00 लाख मनरेगा और बाकी धनराशि ग्रामीण अंशदान से जुटाई गयी है.

 वर्तमान में मल्ला बनास की ग्राम प्रधान श्रीमती बिमला देवी व किमसार की प्रधान श्रीमती सुनीता देवी का कहना है कि भले ही पलायन गाँवों से बदस्तूर जारी है लेकिन पिछले कुछ बर्षों से हमारे दोनों गाँवों में पलायन के कदम थम गए हैं. अब हमें हाईफीड नामक संस्था महिला समूहों के माध्यम से कृषि कार्य की नई तकनीक का प्रशिक्षण देकर उन्नत किस्म की सब्जियां उगाने के लिए प्रशिक्षण देने वाली है. ऐसे में हमें उम्मीद है कि यह क्षेत्र फिर से छोटी विलायत कहलायेगा. मल्ला बनास के समाजसेवी बचन सिंह बिष्ट बताते हैं कि मल्ला बनास की ऊँची शिखर पर घुघती गढ़ है जो कभी नयाल थोकदारों के अधिपत्य में हुआ करता था उसके कुछ ही नीचे दूसरी शिखर रुइण डांडा (थलधार) कहा जाता है जहाँ बर्षों पूर्व खुदाई में चौथी व पांचवीं सदी के लगभग 4.50 किलो सिक्के पाषाण मिले हैं जिन्हें पुरातत्व विभाग की रेख देख में लखनऊ के पुरातत्व संग्रहालय में रखा गया है. तल्ला बनास की सरहद में एक छोटा सा पांच –छ: दुकानों का बाजार है जिसे कांडाखाल नाम से जाना जाता है यहाँ ग्राम सभा के प्रधान बिनोद नेगी के द्वारा बनाया गया है. यह बड़े हैरत की बात है कि प्रदेश के बड़े बड़े बाजारों में जहाँ आज भी सुलभ शौचालय नहीं हैं वहीँ विकास में पिछड़े कहलाने वाले इस क्षेत्र की इस छोटे से बाजार में ग्राम सभा द्वारा सुलभ शौचालय का निर्माण व बेहतरीन रख-रखाव देखते ही बनता है.

शायद इस क्षेत्र को इन्हीं कुछ कारणों से छोटी विलायत कहा जाता रहा हो क्योंकि यहाँ के कर्मयोगी समाज ने जहाँ एक ओर उपेक्षाओं का दंश झेला है वहीँ अपनी जीवटता से हर बार अपने आप को साबित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. बहरहाल ग्रामीणों ने सरकारी महकमों को अंगूठा दिखाकर यह तो साबित कर ही दिया कि अगर वे इनके वायदों और योजनाओं के विश्वास पर ही भरोसा कर बैठे होते तो अब तक ये दोनों गाँव अन्य गाँवों की तरह वीरान हो चुके होते. मल्ला बनास को इस कृत्य के लिए आदर्श गाँव का पुरस्कार भी मिल चुका है.
http://himalayandiscover.com

-श्री उमाशंकर कुकरेती द्वारा वाट्सैप समूह 'कुकरेती भ्रातृ मण्डल' में प्रेषित, दिनांक 27.09.2017

‘नवरात्र’

नव शब्द का अर्थ है नौ अथवा नया। अमावस्या की रात से अष्टमी तक या पड़वा से नवमी की दोपहर तक व्रत नियम चलने से नौ रात यानी ‘नवरात्र’ नाम सार्थक है। इनको व्यक्तिगत रूप से महत्त्व देने के लिए नौ दिन नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं।

पुरातन समय में दुर्गम नाम के दैत्य ने कठोर तप के बल पर परम पिता ब्रह्मा को खुश कर उनसे वर प्राप्ति के उपरांत चार वेदों व पुराणों को अपने अधीन करके कहीं छिपा दिया। वेदों पुराणों के प्रत्यक्ष न होने से सारे जग में वैदिक कर्मकाण्ड बंद हो गए और पृथवी वासी घोर अकाल से तड़पने लगे। सभी दिशाओं में हाहाकार मच गया। सृष्टि विनाश के कगार पर पहुंच गई।

सृष्टि को बचाने के लिए देवताओं ने उपवास रखकर नौ दिन तक मां दुर्गा की उपासना की और माता से सृष्टि को बचाने की विनती की। अपने भक्तों की पुकार पर मां ने असुर दुर्गम को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों के बीच भंयकर युद्ध का आगाज हुआ। मां ने दुर्गम का संहार कर देवताओं को निर्भय कर दिया। तभी से नव व्रत अर्थात नवरात्र का शुभारंभ हुआ।

-श्री मुकेश कुकरेती द्वारा वाट्सैप समूह 'KBM-सदस्य 2017-18' में प्रेषित, दिनांक 27.09.2017